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हकीक़त

जनाब देखिये ये दौर है हवाओ का, मई जून की तपती हवाओ का नहीं, उस शक्ख्स की पिघलती धुप में, तपते उस बदन का, जिसमे आह नहीं, शिकन नहीं, थकने का नाम नहीं , तपती सड़के ,बहती आग, बहता नीर ललाट का, वो रुकता नहीं , झुकता नहीं , सिर्फ एक जूनून परिवार का पेट पालने का , हकीकत क्या पता है उस जीव को जो बेचारा ठहरा है किसी छाव में , ना शिकन उस आहत की, जिनसे रोज वह लड़ा है... हकीकत उस कमाने वाले की नहीं पता ये दौर है क्या, नहीं पता ये लिबास है क्या, नहीं पता ये संसार है क्या।।। हकीकत उसकी बस यही दो जून की रोटी के लिए निकलता है वः हर रोज़ यहाँ..... धन्यवाद् नवरतन चावला शाहपुरा २८-०५-2019

Khushi

Jingdi ki hjaar khusiyo me shamil ek naam h khushi....